कहा री कहति तू मातु मोसौं।
ऐसी बहि गई को, स्याम-संग फिरै जो, बृथा रिस करति कह कहौं तोसौं!।।
कही कौनैं बात, बोलि धौं तिहिं मात, मेरे आगैं कहै, ताहि देखौं।
तात रिस करत, भ्राता कहै मारिहौं, भीति बिनु चित्र तुम करति रेखौ।।
तुमहुँ रिस करति, कछु कहा मोहिं मारिहौ, धन्य पितु भ्रात अरु मातु तुमहीं।
ऐसौ लायक नंद महर कौ सुत भयौ, तिनहिं मोहिं कहति प्रभु सूर सुनहीं।।1707।।