सकुच सहित घर कौं गई, बृषभानु-दुलारी।
महरि देखि तासौं कह्यौ, कहँ रही री प्यारी?।।
घर तोहिं नैकु न देखऊँ, मेरी महतारी।
डोलत लाज न आवई, अजहूँ है बारी।।
पिता आजु रिस करत हे, दै दै कै गारी।
सुता बड़े बृषभानु की, कुल खोवनहारी।।
बंधू मारन कहत हैं, तेरे ढँग का री।
सूर स्याम-सँग फिरति है, जोबन-मतवारी।।1706।।