सकुच सहित घर कौं गई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


सकुच सहित घर कौं गई, बृषभानु-दुलारी।
महरि देखि तासौं कह्यौ, कहँ रही री प्यारी?।।
घर तोहिं नैकु न देखऊँ, मेरी महतारी।
डोलत लाज न आवई, अजहूँ है बारी।।
पिता आजु रिस करत हे, दै दै कै गारी।
सुता बड़े बृषभानु की, कुल खोवनहारी।।
बंधू मारन कहत हैं, तेरे ढँग का री।
सूर स्याम-सँग फिरति है, जोबन-मतवारी।।1706।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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