कहा कमी जाके राम धनी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल



            
कहा कमी जाके राम धनी।
मनसा-नाथ मनोरथ-पूरन, सुख-निधान जाकी मौज धनी।
अर्थ, धर्म, अरु काम, मोक्ष, फल, चारि पदारथ देत गनी।,
इंद्र समान हैं जाके सेवक, नर वपुरे की कहा गनी।
कहा कृपिन की माया गनियै, करत फिरत अपनी-अपनी।
खाइ न सकै खरचि नहिं जानै, ज्‍यौं भुजंग-सिर रहत मनी।
आनँद-मगन राम-गुन गावै, दुख-सँताप की काटि तनी।
सूर कहत जे भजत राम कौं, तिनसौं हरि सौं सदा बनी।।39।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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