जाकौ हरि अंगीकार कियौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            
जाकौ हरि अंगीकार कियौ।
ताके कोटि बिधन हरि हरि कै, अभै प्रताप दियौ।
दुरबासा अँबरीष सतायौ, सो हरि-सरन गयौ।
परतिज्ञा राखी मन-मोहन फिरि तापै पठयौ।
बहुत सासना दइ प्रहलादहिं, ताहि निसंक कियौ।
निकसि खंभ तै नाथ निरंतर, निज राखि लियौ।
मृतक भए सब सखा जिवाए, बिप-जल जाइ पियौ।
सूरदास-प्रभु भक्तबछल हैं, उपमा कौं न बियौ।।38।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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