कहत कान्ह जननी समुझाई।
तहँ-तहँ डारे रहत खिलौना, राधा जनि लै जाइ चुराइ।।
साँझ सवारैं आवन लागी, चितै रहति मुरली-तन आइ।
इनहीं मैं मेरे प्रान बसत हैं, तेरे भाऐं नैकु न माइ।।
राखि छपाइ, कह्यौ करि मेरौ, बलदाऊ कौं जनि पतिआइ।
सूरदास यह कहति जसोदा, को लैहे मोहिं लगौ बलाइ।।710।।