करि न्यारी हरि आपुनि गैयाँ।
नाहिं न बसति लाल कछु तुम्हरैं, तुमसे सबै ग्वाल इक ठैयाँ।।
नहिं आधीन तेरे बाबा के, नहिं तुम हमरे नाथ-गुसैयाँ।
हम तुम जाति-पाँति के एकै, कहा भयौ अधिकी द्वै गैयाँ?
जा दिन तैं सचरे गोपिनि मैं, ताही दिन तैं करत लँगरैयाँ।
मानी हार सूर के प्रभु तव, बहुरि न करिहौं नंद दुहैयाँ।।735।।