करत बिचार चल्यौ सन्मुख ब्रज -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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करत बिचार चल्यौ सन्मुख ब्रज। लटपटात पग धरत धरनि गज।।
कोटि इंद्र जाकैं रोमनि रज। ब्रज अवतार लियौ माया तज।।
उतरि गगन पु‍हुमी पर आए। ब्रजबासी सब देखन धाए।।
चकित भर सब मनहिं भ्रमाए। ब्रज ऊपर आवत ये धाए।।
कहत सुनी लोगनि मुख बाता। येई हैं सुरपति सुर ब्राता।।
देखि सैन ब्रज लोक सकात। यह आयौ कीन्हैं कछु घात।।
सूर स्याम कौं जाइ सुनायौ। सुरपति सैन साजि ब्रज आयौ।।948।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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