कछु दिन ब्रज औरौ रहौ 4 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


देखि भले भट आपने, हरि होरी है।
द्वादस दिवस बिचारि, अहो हरि होरी है।।
करहु किया तैसी सबै, हरि होरी है।
ह्वै निसंक नर नारि, अहो हरि होरी है।।
ढोल भेरि डफ बाँसुरी, हरि होरी है।
बाजै पटह निसान, अहो हरि होरी है।।
मिलहु लोकपति छाँड़ि कै, हरि होरी है।
उबरौ नहीं निदान, अहो हरि होरी है।।
राते कवच बरात सजि, हरि होरी है।
खरनि भए असवार, अहो हरि होरी है।।
धूरि धातु रँग घट भरे, हरि होरी है।
धरे यंत्र हथियार, अहो हरि होरी है।।
जहाँ तहाँ सेना चली, हरि होरी है।
मुक्त काछ सिर केस, अहो हरि होरी है।।
आपौ पर समुझै नहीं, हरि होरी है।
राजा रंक अबेस, अहो हरि होरी है।।
जे कबहूँ देखी नहीं, हरि होरी है।
कबहूँ सुनी न कान, अहो हरि होरी है।।

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