कछु दिन ब्रज औरौ रहौ 5 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


ते कुल नारि निडर भईं, हरि होरी है।
लागे लोग परान, अहो हरि होरी है।।
भस्म भरै अंजन करै, हरि होरी है।
छिरकै चंदन बारि, अहो हरि होरी है।।
मरजादा राखै नहीं, हरि होरी है।
कटिपट डारै फारि, अहो हरि होरी है।।
जहाँ सुनहिं तपसंजमी, हरि होरी है।
धर्म-धीर-आचार, अहो हरि होरी है।।
छिरकहिं तही निसंक ह्वै, हरि होरी है।
पकरहि तोरि किवार, अहो हरि होरी है।।
सठ पंडित वेस्या बधू, हरि होरी है।
सबै भए इकसारि, अहो हरि होरी है।।
तेरसि चौदस दिवस द्वै, हरि होरी है।
जनु जीते जग झार, अहो हरि होरी है।।
पून्यौ प्रगट प्रताप तै, हरि होरी है।
दूरि मिले पालागि, अहो हरि होरी है।।
जहाँ तहाँ होरी जरै हरि होरी है।
मनहु मवासै आगि, अहो हरि होरी है।।

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