कंस नृपति अक्रूर बुलाये -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


कंस नृपति अक्रूर बुलाये।
बैठि इकंत मंत्र दृढ़ कीन्हौ, दोऊ बंधु मँगाये।।
कहूँ मल्ल, कहुँ गज दै राखे, कहूँ धनुष, कहुँ वीर।
नंद महर के बालक मेरै, करषत रहत सरीर।।
उनहिं बुलाइ बीच ही मारौ, नगर न आवन पावै।
'सूर' सुनत अकूर कहत, नृप मन मन मौज बढ़ावै।।2940।।

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