अरुन उदय उठि प्रातही, अक्रूर बुलाए।
आपु कह्यौ प्रतिहार सौ, इक सुनि सत धाए।।
सोवत जाइ जगाइहौ, चलियै नृप पासा।
उहै मंत्र मन मानिकै, उठि चले उदासा।।
नृपति द्वार ही पै खरौ, देखत सिरनायौ।
कहि खवास कौ सेन दै, सिरोपाव मँगायौ।।
अपनै कर लै करि दियौ, सुफलकसुत लीन्हौ।
लै आवहु सुत नंद के, यह आयसु दीन्हौ।।
मुख अकूर हरषित भयौ, हिरदय बिलखानौ।
असुर त्रास अति जिय परयौ, यह कहै सयानौ।।
तुरतहिं रथ पलनाइ कै, अकूरहि दीन्हौ।
आयसु सिर पै मानि कै, आतुर होइ लीन्हौ।।
बिलम करौ जनि नैकहूँ, अबही ब्रज जाहू।
'सूर' काज करि आवहू, जनि रैनि बसाहू।।2939।।