और ग्वाल सब गृह आए गोपालहि बेर भई।
अतिहिं अबेर भई लालन कौं, अजहूँ नहिं छाक गई।
तबहीं तैं भोजन करि राख्यौ, उत्तम दूध जमाइ।
ना जानौं धौं कान्ह कौन बन, चारत बेर लगाइ।
राज करैं वे धेनु तुम्हारी, नंदहि कहति सुनाइ।
पंच की भीख सूर बल-मोहन कहति जसोमति माइ।।455।।