ऊधौ हम लगी साँच के पाछे।
मदन गोपाल चतुर चिंतामनि गोप वेष बपु काछे।।
साँची ज्ञान ध्यान पुनि साँचौ, साँचौ जोग उपाई।
हमकौ साँचे नंदनँदन है, गर्ग कह्यौ समुझाई।।
जुवती जाति मोह कौ भाजन, सदा काम अभिलाषी।
ते करील फल क्यौ चाखत है, जिन चाखी रस दाखी।।
ओसनि प्यास जात कहि कैसै, जब लगि जल नहिं पीजै।
'सूरदास' कौ ठाकुर कान्हा, प्रगट मिलै तौ जीजै।। 162 ।।