ऊधौ औरै कथा कहौ।
तजिऐ ज्ञान सुनत तावत तन, बरु गहि मौन रहौ।।
रुचि द्रुम प्रीति रीति नैननि जल, सीचि ध्यान झर लागी।
ताकै प्रेम फल सुक मन लावत, स्याम सुरँग अनुरागी।।
ग्रीषम अलि आए उपजी ब्रज, कठिन जोग रबि हेरौ।
बन मुरझात ‘सूर’ को राखै, मेह नेह बिनु तेरौ।।3903।।