(उल्हरि आयौ) सीतल बूँद पवन पुरवाई।
जहाँ तहाँ तै उमड़ि घुमड़ि घन, कारी घटा चहूँ दिसि धाई।।
भीजत देखी राधा माधव, लै कारी कामरी उठाई।
अति जल भीजि चीरवर टपकत और सबै टपकत अँबराई।।
काँपत तन तिय कौ, पिय हँसि कै, भुज भरि अपनै कंठ लगाई।
हबै इकठौर 'सूर' प्रभु प्यारी, रहे उपरना बीच समाई।।1990।।