उठि राधे कत रैनि गँवावै।
महि-सुत-गति तजि, जल-सुत-गति तजि, सिंधु-सुधा-पति भवन न भावै।।
अलिवाहन कौ प्रीतम वाला ता वाहन रिपु ताहि सतावै।
सो निवारि चलि प्रान पियारी, धर्म सु नहिं मति भाव न पावै।।
सैल-सुता-सुत-वाहन सजनी ता रिपु ता मुख सब्द सुनावै।
'सूरदास' प्रभु पथ निहारत, तोहि ऐसी हठ क्यौ बनि आवै।।2796।।