इहिं डर बहुरि न गोकुल आए।
सुनि री सखी हमारी करनी, समुझि मधुपुरी छाए।।
अधरातक तै उठि सब बालक, मोहि टेरैगे आइ।
मातु पिता मोकौ पठवैगे, बनहि चरावन गाइ।।
सूने भवन आइ रोकैगी, दधि चोरत नवनीत।
पकरि जसोदा पै लै जैहै, नाचहु गावहु गीत।।
ग्वारिनि मोहिं बहुरि बाँधैगी, कैतव वचन सुनाइ।
वै दुख ‘सूर’ सुमिरि मन ही मन, बहुरि सहै को जाइ।।4034।।