ऊधौ वेद वचन प्रमान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


ऊधौ वेद वचन प्रमान।
कमलमुख पर नैनखजन, निरखि है क्यौ आन।।
श्रीनिकेत, समेत सब गुन, सकल रूप निधान।
अधर सुधा पियाइ बिछुरे, पठै दीन्हौ ज्ञान।।
दूरि नहीं कृपाल केसौ, ये जु हिये समान।
निकरि क्यौ न गोपाल बोलत, दुखिन के दुख जान।।
रूप रेख न देखिऐ तहँ, स्वाद सब्द भुलान।
इच्छुदंड अडारि हरि गुन, गहत पानि विपान।।
वीतराग सुजान जोगिनि, भक्त जननि निवास।
निगम बानी मेटि, कहि क्यौ सकै ‘सूरदास’।।4035।।

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