आवहु, कान्‍ह, साँझ की बेरिया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्‍हरौ



आवहु, कान्‍ह, साँझ की बेरिया।
गाइनि माँझ भए हौ ठाढे, कहति ज‍ननि, यह बड़ी कुबेरिया।
लरिकाई कहँ नैकु न छाँड़त, सोइ रहौ सुथरी सेजरिया।
आए हरि यह बात सुनतहीं, धाइ लए जसुमति महतरिया।
लै पौढ़ी आँगन हीं सुत कौं, छिटकि रही आछी उजियरिया।
सूर स्‍याम कछु कहत कहत ही बस करि लीन्‍हे आइ निंदरिया।।246।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः