आजु हरि ऐसौ रास रच्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


आजु हरि ऐसौ रास रच्यौ।
स्रवन सुन्यौ‍ न कहूँ अवलोक्यौ यह सुख अब लौं कहाँ संच्यौ।।
प्रथमहिं सँचे, समाज साज सुर, सब मोहे, कोऊ न बच्यौ।
एकहिं बार थकित थिर चर कियौ, को जानै को कबहिं नच्यौ!
गत गुन-मद-अभिमान अधिक रुचि लै लोचन मन तहँइ खच्यौ।
सिव-नारद-सारदा कहत यौं, हम इतने दिन बादि पच्यौ।।
निरखि नैन रस-रीति रजनि रुचि, काम-कटक फिर कलह मच्यौ।
सूर धनुष-धीरज न धरयौ तब, उलटि अनंग अनंग तच्यौ।।1139।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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