आजु निसि सोभित सरद सुहाई।
सीतल मंद सुगंध पवन बहै, रोम-रोम सुखदाई।।
जमुना पुलिन पुनीत, परम रुचि, रचि मंडली बनाई।
राधा बाम अंग पर कर धरि, मध्यहिं कुंवर कन्हाई।।
कुंडल संग ताटंक एक भए, जुगल-कपोलनि भाई।
एक उरग मानौ गिरि ऊपर, द्वै ससि उदै कराई।।
चारि चकोर परे मनु फंदा, चलत हैं चंचलताई।
उड़पति गति तजि रह्यौ निरखि लजि, सूरदास बलि जाई।।1138।।