आजु बन बोलन लागे मोर -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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आजु बन बोलन लागे मोर।
कारी घटा घुमड़ि बादर की, बरपति है घन घोर।।
आधी रात कोकिला बोली, बिछुरे नंदकिसोर।
पीउ सु रटत पपीहा बैरी, कीन्हौ मन्मथ जोर।।
दिन प्रति दहत रहत नहिं कबहूँ, हा हा किऐ निहोर।
‘सूर’ स्याम बिनु जियत मूढ मन, जिये जाइ सो थोर।। 145 ।।

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