गगन सघन गरजत भयौ द्वंद -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग सारंग




गगन सघन गरजत भयौ द्वंद।
पसरयौ भूमंडल केतकि जुत, मारुत मनु मकरंद।।
पर पथ अपथ भयौ सुनि सजनी कियौ बासव तित खेत।
कोउ न जाइ कान्ह परदेसहिं, दोउ तजि निबह अनेत।।
विपति बिचारि जानि जदुनदन दीजै दरस उदार।
‘सूर’ स्याम भेंटै अरु मेटै, बिरह बिथा भरि भार।। 144 ।।

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