सजनी निरखि हरि कौ रूप।
मनसि बचसि बिचारि देखौ, अंग अंग अनूप।।
कुटिल केस सुदेस अलिंगन, बदन सरदसरोज।
मकर-कुंडल-किरनि की छवि, दुरत फिरत मनोज।।
अरुन अधर कपोल नासा, सुभग ईपद हास।
दसन की दुति तडित, नव ससि, भ्रकुटि मदनबिलास।।
अंग अंग अनंग जीते, रुचिर उर बनमाल।
‘सूर’ सोभा हृदय पूरन, देत सुख गोपाल।।1822।।