नैननि ध्यान नंदकुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नैननि ध्यान नंदकुमार।
सीस मुकुट सिखंड भ्राजत, नहीं उपमापार।।
कुटिल केस सुदेस राजत, मनहुँ मधुकरजाल।
रुचिर केसरितिलक दीन्हे, परम सोभा भाल।।
भृकुटि बंकट, चारु लोचन, रही जुवती देखि।
मनौ खंजन चापडर डरि, उड़त नहिं तिहिं पेखि।।
मकरकुंडल गंड झलमल, निरखि लज्जित काम।
नासिकाछवि कीर लज्जित, कविनि बरनत नाम।।
अधर बिद्रुम, दसन दाड़िम, चिबुक है चितचोर।
‘सूर’ प्रभुमुख चंद पूरन, नारिनैन चकोर।।1823।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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