सखी तू राधेहिं दोष लगावति।
तेरौ स्याम कहाँ इन देखे, बातनि बैर बढ़ावति।।
हम आगै झूठी नहि कैहै, सखियनि सैन बतावति।
ऐसी बात अरी मुख तेरैं कैसैं धौं कहि आवति।।
भेदहिं भेद कहति है बातैं, ऐसैं मनहिं जनावतिं।
सूर स्याम तैं देखे नाहीं, कीधौं हमहिं दुरावति।।1733।।