काकौ काकौ मुख माई बातनि कौं गहियै।
पाँच की सात लगायौ, झूठी झूठी कै बनायौ, साँची जौ तनक होई तौलौं सब सहियै।।
बातनि गह्यौ अकास, सुनत न आवै साँस, बोलि तौ कछू न आवै, तातैं मौन गहियै।
ऐसैं कहूँ नर नारि, बिना भीति चित्रकारि, काहे कौं देखे मैं कान्हस कहा कहौ कहियै।।
घर घर यहै धैर, बृथा मोसौं करैं बैर, यह सुनि स्रौन, हिरदय दहियै।
सूरदास बरु उपहास होइ सिर मेरैं, नंद कौ सुवन मिलै तो पै कहा चहियै।।1734।।