काकौ काकौ मुख माई बातनि कौं गहियै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट नारायन


काकौ काकौ मुख माई बातनि कौं गहियै।
पाँच की सात लगायौ, झूठी झूठी कै बनायौ, साँची जौ तनक होई तौलौं सब सहियै।।
बातनि गह्यौ अकास, सुनत न आवै साँस, बोलि तौ कछू न आवै, तातैं मौन गहियै।
ऐसैं कहूँ नर नारि, बिना भीति चित्रकारि, काहे कौं देखे मैं कान्हस कहा कहौ कहियै।।
घर घर यहै धैर, बृथा मोसौं करैं बैर, यह सुनि स्रौन, हिरदय दहियै।
सूरदास बरु उपहास होइ सिर मेरैं, नंद कौ सुवन मिलै तो पै कहा चहियै।।1734।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः