तनक कनक की दोहनी, दै-दै री मैया।
तात दुहन सीखन कह्यौ, मोहिं धौरी गैया।
अटपट आसन बैठि कै, गो-थन कर लीन्हौ।
धार अनतहीं देखि कै, ब्रजपति हँसि दीन्हौं।
घर-घर तैं आई सबै, देखन ब्रज-नारी।
चितै चतुर चित हरि लियौ, हँसि गोप-बिहारी।
विप्र बोलि आसन दियौ, कह्यौ बेद उचारी।
सूर स्याम सुरभी दुही, संतनि हितकारी।।409।।