बछरा चारन चले गोपाल।
सुबल, सुदामा अरु श्रीदामा, संग लिए सब ग्वाल।
बछरनि कौं बन माँझ छाँडि़ सब खेलत खेल अनूप।
दनुज एक तहँ आइ, पहुँच्यौ धरे वत्स कौ रूप।
हरि हलधर दिसि चितै कह्यौ तुम जानत हौ इहिं बीर।
कह्यौ आहि दानव इहिं मारौ धारे बत्स-सरीर।
तब हरि सींग गह्यौ इक कर सौं इक सौं गह्यौ पाइ।
थोरेक ही बल सौं छिन भीतर दीनौ ताहि गिराइ।
गिरत धरनि पर प्रान निकसि गए फिरि नहिं आयौ स्वास।
सूरदास ग्वालनि संग मिलि हरि लागे करन बिलास।।410।।