ऊधौ हरि कहियै प्रतिपालक।
जे रिपु तुम पहिलै हति छाँड़े, बहुरि भए मम सालक।।
अघ, बच, बकी, तृनावर्त, केसी, ए सब मिलि ब्रज घेरत।
सूनौ जानि नंदनंदन बिनु, बैर आपनौ फेरत।।
अरु अपनौ परिहास मेटिबै, इंद्र रह्यौ करि घात।
सत्वर ‘सूर’ सहाइ करै को, रही छिनक की बात।।3745।।