ऊधौ जो तुम हमहि सुनायौ।
सो हम निपट कठिनई हठ करि, या मन कौ समुझायौ।।
जुक्ति जतन करि जोग अगह गहि, अपथ पथ लौ लायौ।
भटकि फिरयौ बोहित के खग लौ, पुनि हरि ही पै आयौ।।
हमकौ सब अनहित लागत है, तुम सब हितहि जनायौ।
सुरसरिता जल होम किए तै, कहा अगिनि सचु पायौ।।
अब सोई उपाय उपदेसौ, जिहिं जिय जाइ जिवायौ।
बारक मिलहि ‘सूर’ के स्वामी, कीजै अपनौ भायौ।। 3744।।