ऊधौ कोकिल कूजत कानन।
तुम हमकौ उपदेस करत हौ, भस्म लगावन आनन।।
औरौ सिखी सखा सँग लै लै, टेरत चढ़े पखानन।
बहुरौ आइ पपीहा कै मिस, मदन हनत निज बानन।।
हमतौ निपट अहीरि बाबरी, जोग दीजिऐ जानन।
कहा कथत मासी के आगै, जानत नानी नानन।।
तुम तौ हमैं सिखावन आए, जोग होइ निरवानन।
‘सूर’ मुक्ति कैसै पूजति है, वा मुरली के तानन।।3946।।