रथ पर देखि हरिबलराम।
निरखि कोमलचारु मूरति, ह्रदय मुक्ता दाम।।
मुकुट कुंडल पीत पट छवि, अनुज भ्राता स्याम।
रोहिनीसुत एक कुंडल, गौर तनु सुखधाम।।
जननि कैसै धरयौ धीरज, कहतिं सब पुरबाम।
बोलि पठयौ कस इनकौ, करै धौ कह काम।।
जोरि कर विधि सौ मनावतिं, असिष दै दै नाम।
न्हात बार न खसै इनकौ, कुसल पहुँचै धाम।।
कस कौ निरबस ह्वै है, करत इन पर ताम।
'सूर' प्रभु नंदसुवन दोऊ हंसबाल उपाम।।3029।।