देखु वै आवत हैं बनमाली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


देखु वै आवत हैं वनमाली।
घन तन स्याम सुदेस पीत पट, सुंदर नैन बिसाली।।
जिन पहिलै पलना पौढ़े, पय पिवत पूतना घाली।
अध बक बच्छ अरिष्ट केसि मथि, जल तै काढ्यौ काली।।
जिन हति सकट प्रलंब तृनावृत, इंद्र प्रतिज्ञा टाली।
एते पर यह समुझत नाही, कपटी कंस कुचाली।।
अब विधुबदन विलोकि सुलोचन, स्रवन सुनत ही आली।
धन्य सु गोकुलनारि 'सूर' प्रभु प्रगट प्रीति प्रतिपाली।।3030।।

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