हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 98 श्लोक 71-76

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 98 श्लोक 71-76

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समकूलजलोपेता: शान्तंशर्करवालुका:।
तस्मिन्‍पुरवरे नद्य: प्रसन्निसलिला ह्रदा:।।71।।

पुष्पा्कुलजलोपेता नानाद्रुमलताकुला:।
अपराश्चा‍भवन्‍ नद्यो हेमशर्करवालुका:।।72।।

मत्तशबर्हिणसंघैश्चा कोकिलैश्चे सदामदै:।
बभूवु: परमोपेतास्तनस्यांच पुर्यां च पादपा:।।73।।

तत्रैव गजयूथानि पुरे गोमहिषास्तरथा।
निवासश्चज कृतस्तहत्र वराहमृगपक्षिभि:।।74।।

पुर्यां तस्यां तु रम्यातयां प्राकारो वै हिरण्मय:।
व्य्क्त‍: किष्कुयशतोत्से धो विहितो विश्व कर्मणा।।75।।

अतीव रम्यस: सोअथासीद् वेष्टित: पर्वतो यथा।
ते च ते च महाशैला: सरितश्चद सरांसि च।
परिक्षिप्ताहनि भौमेन वनान्यु पवनानि च।।76।।
 
इति श्रीमहाभारते खिलभागे हरिवंशे विष्णुेपर्वणि द्वारकाविशेषनिर्माणं नामाष्टीनवतितमोअध्याय:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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