हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 72 श्लोक 56-60

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 72 श्लोक 56-60

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अन्यों धन्य: संस्कृतश्चोलत्तदमश्च जगत् सृष्ट्वा योऽत्ति सर्वातिगुह्य:।
स मां मुखप्रमुखे पातु नित्यं विचिन्वान:प्रथम: षड्गुणानाम्।।56।।

गुणत्रैकाल्यं यस्य देवस्य नित्यं‍ सत्त्वोद्रेको यस्य भावात् प्रसूत:।
गोप्ताै गोप्तृंणां सन्नदो दुष्कृतीनामाद्यो विश्वशस्य बाधमानस्य् क्रुद्ध:।।57।।

धाम्नो यस्य हरिरग्रोऽथ विश्वो ब्रह्मा पुत्रै: सहितश्चव द्विजाश्च।
पराभूता भवने यस्य सोमो जुषत्वेष श्रेयसे साधुगोप्ता।।58।।

यस्माद् भूतानां भूतिरन्तोऽथ मध्यं धृतिर्भूतिर्यश्च गुहाश्रुतिश्चा।
गुहाभिभूतस्य पुरुषेश्वरस्य महात्मन: सम्मृडवेद्यस्य् तस्य।।59।।

यल्लिंगांकं त्र्यम्बक: सर्वमीशो भगलिंगांकं यद्ध्युमा सर्वधात्री।
नान्यंत् तृतीयं जगतीहास्ति किंचिन्महादेवात् सर्वसर्वेश्वरोऽसौ।।60।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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