हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 61-65

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 61-65

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छत्रेण ध्रियमाणेन पाण्डुरेण वपुष्म‍ता।
सलिलस्त्राविणा श्रेष्ठं चापमुद्यम्य धिष्ठित:।।61।।

अपां पतिरतिक्रुद्ध: पुत्रपौत्रबलान्वित:।
आह्वयन्निव युद्धाय विस्फारितमहाधुन:।।62।।

स तु प्राध्मादपयच्छं‍खं वरुण: समधावत।
हरिं हर इव क्रुद्धो बाणजालै: समावृणोत्।।63।।

तत: प्रध्माय जलजं पांचजन्यं जनार्दन:।
बाणजालैर्दिश: सर्वास्ततश्चंक्रे महाबल:।।64।।

तत: शरौघैर्विमलैर्वरुण: पीडितो रणे।
स्मयन्निव तत: कृष्णं वरुण: प्रत्यरयुध्यत।।65।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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