हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 31-35

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 31-35

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व्यक्त‍मस्य हि तत्त्स्वप्नो हृदये परिवर्तते।
इति तत्रैव बुद्ध्या च निश्चिता गतसाध्वसा।।31।।

सा दृष्ट्वाब परमस्त्रीणां मध्यें शक्रध्वजोपमम्।
चिन्तषयाविष्टहृदया चित्रलेखा मनस्विनी।।32।।

कथं कार्यमिदं कार्यं कथं स्वस्ति भवेदिति।
सान्तर्हिता चिन्तसयित्वा चित्रलेखा यशस्विनी।।33।।

तामस्या्च्छा दयामास विद्यया शुभलोचना।
ततोऽन्त्रक्षादेवाशु प्रसादोपर्यधिष्ठिता।।34।।

प्राद्युम्निं वचनं प्राह श्लुक्ष्णं मधुरया गिरा।
चक्षुर्दत्वां वच तु सा तस्मै कृत्वा चात्मनिदर्शनम्।।35।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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