हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 108 श्लोक 26-30

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 108 श्लोक 26-30

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कामपत्नीत न कान्तैदषा शम्बकरस्य‍ रति: प्रिया।
मायारूपेण तं दैत्यंन मोहयत्यसकृच्छुभा।।26।।

न चैषा तस्यं कौमारे वशे तिष्ठमति शोभना।
आत्मषमायामयं कृत्वाे रूपं शम्बरमाविशत्।।27।।

पत्न्येषा मम पुत्रस्य स्त्रुषा तव वरांगना।
लोककान्त‍स्य‍ साहय्यं करिष्य‍ति मनोनयम्।। 28।।

प्रवेशयैनां भवनं पूज्यां ज्येंष्ठां स्नुषां मम।
चिरं प्रणष्टंव च सुतं भजस्व पुनरागतम्।।29।।

वैशम्पायन उवाच
श्रुत्वा‍ तु वचनं देवी कृष्णेनोदाहृतं तदा।
प्रहर्षमतु लंब्ध्वा रुक्मिणी वाक्यंमब्रवीत्।।30।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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