हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 107 श्लोक 26-32

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 107 श्लोक 26-32

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स क्षिप्तो् वृष्णिसिंहेन शर: क्रव्यादमोहन:।।26।।
हृदयं शम्बस्याथ भित्त्वा धरणिमागत:।

न चास्य मांसं न स्नायुर्नास्थि न त्वंं न शोणितम्।।27।।
सर्वं तद् भस्मसाद्भूतं वैष्णवास्त्रस्यं तेजसा।

हते दैत्ये महाकाये दानवे शम्बरेऽधमे।।28।।
जृषुर्देगन्धर्वा ननृतुश्चाप्सरोगणा:।

उर्वशी मेनका रम्भा विप्रचित्तिस्तिलोत्तऽमा।।29।।

ननृतुर्हृष्ट मनसो जगत् स्था‍वरजंगमम्।
देवराजस्तु सुप्रीत: सर्वदेवगणै: सह।
प्रद्युम्नं पुष्पीवर्षेण तमभ्येर्च्य प्रहृष्टवत्।।30।।

अथ समरहते तु दैत्यराजे मधुमथनस्य सुतेन वैष्णंवास्त्रै:।
विगतरिपुभया: सुराश्च जग्मुगर्मकरविभषणकेतनं स्तुवन्त:।।31।।

स च समरपरिश्रमं वहन वै नगरमुखं प्रविवेश रौक्मिणेय:।
प्रियतम इव कान्तवया प्रहृष्ट- गस्वशरितपदं रतिदर्शनं चकार।।32।।
 
इति श्रीमहाभारते खिलभागे हरिवंशे विष्णुुपर्वणि शम्बशरवधे सप्ताेधिकशततमोऽध्याय:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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