हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 105 श्लोक 41-45

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 105 श्लोक 41-45

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सप्तत्या शत्रुहन्तारं द्वयशीत्या तु प्रमर्दनम्।
बिभेद परमामर्षी रुक्मिण्या नन्दिवर्धन:।।41।।

ततस्ते सचिवा: क्रुद्धा: प्रद्युम्नं शरवृष्टिभि:।
एकैकशो बिभेदाजौ षष्टिभि: षष्टिभि: शरै:।।42।।

तानप्राप्ताच्छभरान् बाणैश्चिच्छेद मकरध्वज:।
ततोऽर्द्धचन्द्र मादाय दुर्द्धरस्य स सारथिम्।।43।।
जघान पश्यतां राज्ञां सर्वेषां सैनिकस्य वै।

चतुर्भिरथ नाराचै: सुपर्वै: कंकतेजितै:।।44।।
जघान चतुर: सोऽश्वांन् दुर्धरस्य् रथं प्रति।

एकेन योक्त्रं छत्रं च ध्वजमेकेन बन्धुुरम्।।45।।
षष्ट्या च युगचक्राक्षं चिच्छेद मकरध्वज:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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