हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 23-41 का हिन्दी अनुवाद
यादवकुमारों ने माया से वहाँ कैलास को ही मूर्तिमान कर दिया। क्रोध में भरे हुए नलकूबर ने जिस प्रकार दुरात्मा रावण को शाप दिया और जिस तरह रम्भा को सान्त्वना प्रदान की, इस प्रकरण का, जिसके द्वारा सर्वज्ञ महात्मा नारद मुनि की कीर्ति पर प्रकाश पड़ता है, उन वीर यादवकुमारों ने नाटक द्वारा प्रदर्शन किया। अत्यन्त तेजस्वी भीमवंशियों के पाद-विक्षेपपूर्वक किये गये नृत्य और अभिनय से संतुष्ट हुए दानवीर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। उन्होंने अच्छे-अच्छे वस्त्र, रत्नमय आभूषण तथा वर्तुलाकर मणि से विद्ध एवं वैदूर्य मणि से विभूषित हार दिये। विचित्र विमान, आकाशगामी रथ और दिव्य नागों के कुल में उत्पन्न हुए आकाशचारी हाथी भी प्रदान किये। भरतनन्दन! उन दानवों ने यादवकुमारों को दिव्य शीतल एवं सरस चन्दन, अगुरु आदि श्रेष्ठ सुगन्धित पदार्थ तथा चिन्तन करने मात्र से सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाले उदार चिन्तामणि नामक रत्न भी दिये। पुरुषप्रवर! नरेश्वर! वहाँ बहुत बार नाटक देखने को अवसर मिले। उन सभी अवसरों पर दानवों तथा प्रधान-प्रधान दानवों की स्त्रियों ने इतने उपहार दिये कि वे सब-के-सब धन तथा रत्नों से रहित हो गये। तब प्रभावती की सखी हंसी ने प्रभावती से कहा- 'अनिन्दिते! मैं यादवों द्वारा सुरक्षित रमणीय द्वारकापुरी में गयी थी। चारूलोचने! वहाँ एकान्त में मैंने प्रद्युम्न से भेंट की। शुचिस्मिते! तुम्हारी प्रद्युम्न के प्रति जो भक्ति है, उसकी भी मैंने उनसे चर्चा की। कमललोचने! मेरी बात सुनकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने आज ही प्रदोष काल में तुमसे मिलने का समय निश्चित किया। अत: सुश्रोणि! आज ही तुम्हारी अपने प्राणवल्लभ से भेंट होगी; क्योंकि यदुकुल में उत्पन्न हुए पुरुष अपने प्रेमीजनों के प्रति कोई मिथ्या संदेश नहीं देते हैं।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ षड्ज, मध्यम और गान्धार- ये तीन ग्राम हैं।
- ↑ यहाँ नान्दि शब्द एक वाद्य विशेष का वाचक है। यह चमड़े के थैले के समान होता है और उसके मुख पर शिववाहन नन्दी के मुख की आकृति बनी रहती है, इसीलिये उसे नान्दी कहते हैं। कुछ लोगों के मत में बारह पटहों (नगाड़ों) की ध्वनि को ही नान्दि कहते हैं। कहीं-कहीं नान्दि की जगह नान्दी पाठ है। देवताओं और द्विजों आदि की शुभाशंसा करने वाली जो पद्य अथवा गीतमयी वाक्यावली है, जो नाटक के पूर्व रंग में प्रार्थना के रूप में पढ़ी जाती है, उसका नाम नान्दी है। उस नान्दी के अन्त में सूत्रधार नाटक की प्रस्तावना करता है।
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज