हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 72 श्लोक 49-54

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 49-54 का हिन्दी अनुवाद

जो देवताओं के भी देवता, पावनों के भी पावन, कृतियों की भी कृति, यज्ञों के भी यज्ञ- अर्थात यजनियों के भी यजनीय हैं, जो महान से भी महान शान्त स्वरूप हैं तथा इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवताओं के लिये भी स्तवनीय हैं, उन सबके पालक रुद्रदेव की मैं शरण लेता हूँ। जो सबके अन्त:करण में विचरण करने वाले अर्न्तयामी पुरुष, जिन्हें गुह्य कहा गया है, जो दूसरे प्रकाश से रहित स्वयं प्रकाश रूप हैं, प्रणव (ॐकार) जिनका नाम है, जो परम अक्षर (जीव) के भी परम कारण हैं, उन मंगलकारी गुणवान देवता भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ। जो जगत और जीव दोनों की योनि हैं, फिर भी समस्त कारणों से अतीत होने के कारण जो उनकी योनि नहीं है।

अतएव सूक्ष्म (कठिनता से समझ में आने वाले) हैं; सम्पूर्ण भूतों से पृथक हैं और उन सबके एक भूत अभिन्न होने के कारण पृथक नहीं भी हैं, जो स्वयं ही समस्त जगत के रूप में प्रकट हुए हैं और सबके लय स्थान भी हैं तथा जो उत्तम दाता, स्वा‍द (रुचि), हर्ष तथा रमणीय रत्नरूप हैं, वे भगवान शंकर मेरी रक्षा करें जो अर्न्तयामी होने के कारण सबके निकट हैं तथा साधनशील पुरुषों के लिये सन्नतर–अनावृत अर्थात अपरोक्ष हैं, श्रद्धालु मनुष्यों को उनकी श्रद्धा के अनुरूप वृद्धि (ज्ञान एवं भक्ति) प्रदान करने वाले हैं तथा जो महान पुण्य, आत्मा प्रमथगणों के अधिपति और अभीष्ट मनोरथों एवं सर्वज्ञता आदि छ: गुणों की पूर्ति करने वाले हैं, वे भगवान शिव मेरी रक्षा करें।

जो बाहर-भीतर के पाप-तापों का नाश करने वाले तथा स्वयं ही जगत के कर्ता (निमित्त कारण) हैं, पञ्चभूतों के आकार में अपने-आपको प्रकट करना जिनका स्वभाव है अर्थात जो स्वयं ही जगत का उपादान कारण बनते हैं और आयुध धारण करके क्रोधादि विकारों को प्रकट करते हैं, जिनका ओज (बल-पराक्रम) सबसे उत्तम है तथा जो देवताओं के भी देवता हैं, वे परमेश्वर शिव पुण्यात्मा पुरुषों का तथा मेरा भी पाप-ताप दूर करें। जो देवताओं का महान अपराध किया करते थे, उन मायावी असुरों को जिन्होंने पूर्वकाल में अपने अस्त्रों द्वारा कांटों की भाँति उखाड़ फेंका था, अपने भयानक बाण से उनके तीनों पुरों को जलाकर उन्हें भी भस्म कर दिया और इस प्रकार शस्त्रों द्वारा न मारे जाने के कारण उन असुरों की मृत्यु व्यर्थ हो गयी थी- यह सब जिनके प्रभाव से सम्भव हुआ तथा जो सबके कारण भूत प्रकृति या प्रधान के भी आश्रय हैं, वे सबसे ज्येष्ठ परमेश्वर शिव मेरी रक्षा करें।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः