हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 64 श्लोक 18-33

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतु:षष्टितम अध्याय: श्लोक 18-33 का हिन्दी अनुवाद

वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! भगवान श्रीकृष्ण ने वह सारा वैभव लेकर उसकी परीक्षा करके सब-का-सब दानवों द्वारा द्वारकापुरी को पहुँचवा दिया। तदन्तर माधव ने सुवर्ण की वर्षा करते हुए वरुण के उस छत्र को स्वयं ही उठाकर गरुड़ पर रख दिया और मूर्तिमान मेघ के समान आकाशगामी ‍पक्षिप्रवर गरुड़ पर वे स्वयं भी बैठ गये। तत्पश्चात वे गिरिश्रेष्ठ मणिपर्वत के समीप गये। वहाँ बड़ी पवित्र हवा चल रही थी। सोने के समान रंग वाली मणियों की निर्मल प्रभाएँ सूर्य को तिरस्कृत-सा करके प्रकाशित हो रही थीं। वहाँ मधुसूदन ने बहुत-से वैदूर्यमणि के समान रंग वाले प्रकाशमान द्वार और घर देखे, जहाँ बन्दनवारें बँधी थीं और पताकाएँ फहरा रही थीं।

वह मणिपर्वत (जो कन्याओं का अन्त:पुर था) बिजली से गुँथे हुए मेघ के समान प्रकाशित होता था। जिनमें सोने के विचित्र चँदोवे तने हुए थे, ऐसे महल उसकी शोभा बढ़ाते थे। वहाँ मधुसूदन ने श्रेष्ठ सुवर्ण के समान कान्ति वाली प्रधान-प्रधान गन्धर्वों और देवताओं की उन प्‍यारी पुत्रियों को देखा, जो उस पर्वत की कन्दरा में कैद की गयी थीं। उन सबके नितम्ब भाग स्थूल और मांसल थे। नरकासुर ने सब ओर से लाकर उन्हें रख छोड़ा था। वह प्रदेश स्वर्ग के समान सुखद था। वहाँ रहती हुई वे कुमारियाँ नरकासुर से पराजित नहीं हुई थीं। उन्होंने कामभोग का परित्याग कर रखा था और वे देवियों के समान वहाँ सुखपूर्वक रहती थीं। एक वेणी धारण करने वाली तथा काषाय वस्त्र से अपने अंगों को आच्छादित करने वाली उन समस्त कुमारियों ने महाबाहु श्रीकृष्ण को चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने अपनी इन्द्रियों को पूर्णत: संयम में रखा था। व्रत और उपवास करने के कारण उनके सारे अंगों दुबले हो गये थे।

वे सदा ही श्रीकृष्ण के दर्शन की अभिलाषा रखती थीं। यदुकुल के सिंह श्रीकृष्ण के पास जाकर उन सब कुमारियों ने हाथ जोड़ लिये नरकासुर, महान असुर मुर, हयग्रीव तथा निसुन्द को मारा गया जानकर वे सब स्त्रियाँ श्रीकृष्ण को घेरकर खड़ी हुई थीं। जो बड़े-बुढ़े दानव उन कुमारियों के रक्षक थे, उनकी अवस्था बहुत अधिक थी। उन सबने हाथ जोड़कर यदुनन्दन को प्रणाम किया। वृषभ के समान विशाल नेत्र वाले श्रीकृष्ण दर्शन करके उन समस्त़ सुन्दरियों के मन में उन्हें पति बनाने का संकल्प उदित हुआ। श्रीकृष्ण का चन्द्रमा के समान मनोहर मुख देखकर उनकी सारी इन्द्रियाँ आनन्दसिन्धु में निमग्न हो गयी थी। वे अत्यन्त हर्ष में भरकर उन महाबाहु से इस प्रकार बोलीं- 'भगवान! पूर्वकाल में वासुदेव ने तथा सम्पूर्ण भूतों के मनोभाव को जानने वाले देवर्षि नारद ने भी जो बात कही थी, वह आज सत्य हो गयी।

Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः