हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 50 श्लोक 85-91

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 85-91 का हिन्दी अनुवाद


कैशिक ने कहा- प्रभो! देव! अब तक सब राजा अज्ञानवश आप के विषय में यही जानते थे कि ये भी मनुष्य ही हैं; इसीलिये ये लोग आपके प्रति अपराध कर बैठे हैं। आप इन अपराधियों को क्षमा कर दें।

श्रीकृष्ण बोले- कैशिक! मेरे मन में एक दिन भी वैर नहीं टिकता है। विशेषतः क्षत्रिय-धर्म में स्थिर रहने वाले नरेशों पर, जो युद्ध को धर्म समझकर उसमें प्रवृत्त होते और अधर्म से मुँह मोड़े रहते हैं, किसलिये क्रोध किया जाय। भूमिपालों! जो बीत गया, वह गया; जो लोग मर गये, वे स्वर्ग में चले गये। इस मनुष्य-लोक का यह स्वाभाविक धर्म (नियम) है कि यहाँ प्राणी जन्म लेते और मरते रहते हैं। अतः नरेश्वरों! जो लोग मर गये या मारे गये, उनके लिये आप लोगों को शोक नहीं करना चाहिये। हमें तो क्षमा ही अच्छी लगती है। अतः वे सब राजा आज से वैर भाव का त्याग करके निर्वैर हो जायँ।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उन नरेशों से ऐसा कहकर उन्हें आश्वासन दे महातेजस्वी भगवान मधुसूदन कैशिक के मुँह की ओर देखकर चुप हो गये। इसी समय वक्ताओं में श्रेष्ठ नीतिकुशल राजा भीष्मक भगवान का यथोचित पूजन करके बोले-।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में रुक्मिणी का स्वयंवर विषयक पचासवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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