हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 43 श्लोक 44-55

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 44-55 का हिन्दी अनुवाद

चक्र और हल द्वारा जहाँ विप्लव मच गया था, उस घोर संग्राम में राक्षसों द्वारा उपस्थित की गई भयंकर उत्पातसूचक घटनाएं घटित होने लगीं। जो आर्तभाव से चीख रहे थे तथा जो बांस की तरह चीर डाले गए थे, ऐसे मनुष्यों, हाथियों, रथारोहियों और घोड़ों की अंतिम संख्या कितनी है, इसका पता लगाना असंभव हो गया था। धरती पर पड़े हुए राजाओं के रुधिर से भीगी हुई रणभूमि लाल चंदन से आर्द्र अंग वाली नारी के समान भयंकर प्रतीत हो रही थी। मनुष्यों के केशों, हडि्डयों, मज्जाओं तथा आंतों से मिला हुआ कटे हाथियों के रक्त प्रवाह वहाँ की भूमि को आच्छादित करता जा रहा था।

वह रणभूमि बड़ी भयानक प्रतीत होती थी। वहाँ मनुष्यों और उनके वाहनों का संहार हो रहा था। गीदड़ियों के अमंगल सूचक शब्द वहाँ सदा गूंजते रहते थे। वह देखने में भी बड़ी भयंकर थी। आर्त प्राणियों की चीख–पुकार का शब्द सब ओर फैला हुआ था। रक्त के कितने ही कुण्ड बन गए थे। हाथियों की लाशों से ढंकी हुई वह युद्धस्थली काल की क्रीड़ा भूमि के समान प्रतीत होती थी। कहीं योद्धाओं की बांहें कटकर गिरी थीं। कहीं बहुत-से योद्धा ही मरे पड़े थे और कहीं विदीर्ण हुए घोड़ों की लाशें बिछी हुई थीं। बड़े-बड़े बगुलों, कौओं और गीधों की बोलियों से वह समरांगण गूंज रहा था। जहाँ बड़े–बड़े भूमिपाल धराशायी हो रहे थे और मृत्यु एक साधारण सी बात हो गई थी, उस रणभूमि में काल के समान दिखाई देने वाले श्रीकृष्ण शत्रुओं का वध करने के लिए विचर कर रहे थे।

प्रलयकाल के सूर्य की भाँति प्रकाशित होने वाले चक्र और लोहे की बनी हुई काली गदा को हाथ में लेकर भगवान श्रीकृष्ण सेना के मध्य की भूमि पर खड़े हो राजाओं से इस प्रकार बोले- 'हाथी, घोड़े और रथों से युक्त शूरवीरों! अब युद्ध क्यों नहीं करते हो? अस्त्रों के विद्वान तथा युद्ध का दृढ़ निश्चय रखने वाले वीरों! क्यों इस प्रकार पलायन करते हो? मैं तो युद्ध में अपने बड़े भाई के साथ तुम्हारे सामने पैदल ही खड़ा हूँ। युद्ध में जिसने दोष नहीं देखा है तथा जिसके द्वारा तुम पालित हुए हो, वह जरासन्ध अब हमारे सामने क्यों नहीं आ रहा है? श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पराक्रमी राजा दरद सेना के मध्य में खड़े हुए तथा हल के अग्रभाग से उग्र भुजा वाले बलराम के सामने आया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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