हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चत्वाथरिंश अध्याय: श्लोक 39-51 का हिन्दी अनुवाद
गिरिराज गोमन्त के शिखर पर विराजमान मानव रूपधारी विष्णु को प्रकाश और चेष्टाओं से रहित तथा मुकुट हीन देख उनके मानसिक भावों को समझने वाले पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड़ ने आकाश में स्थित होकर बड़े हर्ष के साथ उन श्री विष्णु के सिर पर वह मुकुट डाल दिया। वह मुकुट श्रीकृष्ण के मस्तक पर गिरा और इस प्रकार बैठ गया मानो किसी ने पहना दिया हो। मस्तक के स्थान पर निश्चित रूप से आबद्ध होकर उस मुकुट ने भगवान श्रीकृष्ण की शोभा बढ़ा दी। जैसे दोपहर के समय में रुके शिखर पर सूर्यदेव प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार वह मुकुट भी देदीप्यमान हो रहा था। गरुड़ के प्रयोग से मुकुट को मस्तक पर आया हुआ जान श्रीकृष्ण का मुख प्रसन्नता से खिल उठा और वे बलराम जी से इस प्रकार बोले- 'भैया! इस पर्वत पर हम दोनों के लिए जिस प्रकार युद्धोपयोगी वेष-भूषा की रचना कर दी गई है, इससे यही अनुमान होता है कि देवताओं का कार्य एवं प्रयोजन शीघ्र ही सिद्ध होना चाहता है, इसमें संशय नहीं है। जब मैं महासागर में सो रहा था, उस समय विरोचन का पुत्र इंद्र का-सा रूप धारण करके वहाँ चला गया और जब मैं शेषशय्या से उठ कर यहाँ आ गया, तब वह ग्राह रूप धारण करके वहाँ से मेरा मुकुट उठा लाया। वही मुकुट गरुड़ उससे छीन लाए हैं और उन्होंने इसे मेरे मस्तक पर रख दिया है। निश्चय ही राजा जरासन्ध अब बहुत निकट आ गया है, क्योंकि वायु के समान वेग वाले रथों की ध्वजाओं के अग्रभाग दिखाई दे रहे हैं। आर्य! विजय की अभिलाषा रखने वाले राजाओं के ये चंद्रमा– जैसे श्वेत कान्ति वाले सुसज्जित छत्र प्रकाशित हो रहे हैं, इसकी संख्या परिमित ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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