हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 38 श्लोक 18-31

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 18-31 का हिन्दी अनुवाद


देवताओं के समान श्रेष्ठ पराक्रमी नृपवर मुचुकन्द ने उस पुरी का अपने ही तेज से निर्मित शुभ सुन्दर नाम रखा- विन्य-गिरि के शिखर पर बसी हुई यह नगरी महान अश्मसंघात (प्रस्तर समूह) से युक्त है, इसलिये संसार में ‘माहिष्मतिपुरी’ के नाम से विख्यात होगी। राजा मुचुकुन्द ने उत्तम शोभा सम्पत्ति से सम्पन्न उस महापुरी को दोनों विन्य पर्वतों के बीच में बसाया था। तत्पश्चात उन धर्मात्मा नरेश ने एक ‘पुरिका’ नाम वाली पुरी बसायी, जो देवपुरी के समान प्रकाशित होती थी। उसके भीतर सैकड़ों उद्यान बने थे तथा वैभवपूर्ण हाट-बाजार और चौराहे भी उसकी शोभा बढ़ाते थे। ऋक्षवान पर्वत के समीप, रोग-शोक से रहित नर्मदा तट पर राजा ने पुरिका नामक पुरी का निर्माण कराया था। धर्म में स्थित हुए वे धर्मात्मा नरेश देवताओं के उपभोग में आने वाली स्वर्गीय पुरियों के समान उन दो सुन्दर नगरों का निर्माण करके उनका पालन करने लगे।

राजर्षि पद्मवर्ण ने भी सह्यपर्वत के पृष्ठ भाग में वृक्षों और लताओं से व्याप्त वेणा नदी के तट पर एक उत्तम नगर का निर्माण कराया अपनी राज्यभूमि का विस्तार दूसरों की अपेक्षा छोटा जानकर उन्होंने अपने सम्पूर्ण राष्ट्र को ही एक नगर के रूप में बसाया और उसे सब ओर से एक विशाल चहार दिवारी के द्वारा घेर दिया। उस उत्तम राष्ट्र में परकोटे की ही प्रधानता थी। उनका राज्य पद्मावत जनपद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनकी राजधानी का नाम करवीरपुर हुआ। पद्मवर्ण ने शिल्प शास्त्र के नियमों के अनुसार उस नगर का निर्माण कराया था। राजा सारस ने भी क्रौञ्चपुर नामक महान एवं रमणीय नगर का निर्माण कराया, जिसमें चम्पा और अशोक-वृक्षों की बहुलता थी।

उसका विस्तार बड़ा था और वहाँ तांबे का कारोबार होता था, जिससे लोगों की जीविका चलती थी उस नगर का महान समृद्धिशाली एवं शोभायमान जनपद ‘वनवासी’ नाम से विख्यात हुआ। वहाँ सभी ॠतुओं में फूलने-फलने वाले वृक्ष सब ओर हरे-भरे दिखाई देते थे। हरित भी रत्न राशि से पूर्ण उस समुद्र-सम्बन्धी द्वीप का पालन करने लगे, जो नारीजनों के लिये मनोहर था (अथवा नारियों के कारण मनोहर प्रतीत होता था)। राजा हरित के द्वारा नियुक्त हुए धीवर, जो वहाँ ‘मद्गुर’ नाम से प्रसिद्ध थे, जल में डूबकर समुद्र के भीतर विचरने वाले शंखों का पकड़ लाते थे। उनके दूसरे-दूसरे मल्लाह सदा सावधान रहकर जल के भीतर होने वाले मूंगों तथा चमकीले मोतियों का संग्रह करते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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