हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 36 श्लोक 30-40

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षटत्रिंश अध्याय: श्लोक 30-40 का हिन्दी अनुवाद

'दूसरों को मान देने वाले बलराम जी! जरासंध का वध आपके हाथ से होने वाला नहीं है; अत: खेद करने की आवश्यकता नहीं है। इसकी मृत्यु का हेतु मुझे विदित हो गया है: अत: आप इसे मारने की चेष्टा से निवृत हो जाइये। मगधराज जरासंध थोड़े ही समय में अपने प्राणों का परित्याग करेगा।' यह सुनकर जरासंध का मन उदास हो गया और बलराम जी ने फि‍र उस पर प्रहार नहीं किया। अब वे दोनों युद्ध से विरत हो गये; फि‍र तो वृष्णिवंशी योद्धा तथा दूसरे राजाओं ने भी युद्ध बंद कर दिया। महाराज! इस प्रकार दीर्घकाल तक एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए उन योद्धाओं का जो अत्यन्त भयंकर युद्ध अविराम गति से चलता आ रहा था, वह शान्त हो गया।

राजा जरासंध जब परास्त होकर युद्ध से हट गया और सूर्यदेव अस्त हो गये, तब रात के समय यादवों ने फि‍र उसका पीछा नहीं किया। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सुरक्षित महाबली यादव अपने लक्ष्य में सफल हो चुके थे, अत: वे अपनी सेना साथ लेकर बड़ी प्रसन्नता के साथ मथुरापुरी में लौट आये। इसी तरह आकाश या दिव्यलोक से जो आयुध आये थे, वे भी तत्काल अन्तर्धान हो गये। इधर राजा जरासंध भी उदास होकर अपनी पुरी को लौट गया।

उसके साथ जो राजा लोग आये थे, वे भी अपने-अपने राष्ट्रों को ही लौट गये। कुरुश्रेष्ठ! वृष्णिवंशी वीर जरासंध को जीतकर भी उसे हारा हुआ नहीं मानते थे; क्योंकि उस राजा के पास बहुत बड़ी सेना थी तथा वह स्वयं भी अत्यन्त बलशाली था। महाबली यादवों ने जरासंध को अठारह बार युद्ध का अवसर प्रदान किया; किंतु वे किसी भी समर में उसे मार न सके। महामते! राजा जरासंध के पास बीस अक्षौहिणी सेनाएं थीं, जो उसके लिये लड़ने को आयी थीं।

भरतश्रेष्ठ! राजेन्द्र! वृष्णिवंशी वीर संख्या में बहुत कम थे, इसलिये वे राजाओं सहित जरासंध से अभिभूत हो जाते थे। मगध के राजा पृथ्वीपति जरासंध को इस प्रकार युद्ध में जीतकर वृष्णिवंश के सिंह- जैसे पराक्रमी महारथी सुखपूर्वक वहाँ विहार करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में जरासंध का पलायनविषयक छ्त्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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