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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षडविंश अध्याय: श्लोक 64-71 का हिन्दी अनुवाद
फिर उसी प्रकार उन सहस्र मुखधारी शेषनाग की गोद में बैठे हुए भगवान श्रीकृष्ण को भी अक्रूर ने देखा, जो उस समय पूजित हो रहे थे। तब मन-ही-मन उसी मन्त्र का जप करते हुए पुन: सहसा उठकर अमित दक्षिणा देने वाले अक्रूर उसी मार्ग से रथ के समीप चले गये। तब हर्ष में भरे हुए श्रीकृष्ण वहाँ खड़े हुए अक्रूर के पास आये और पूछने लगे- 'कहिये, उस भागवत हृदय में नागलोक का वृतान्त कैसा रहा? आपने तो ध्यान के ही व्यासंग से बहुत देर लगा दी। मैं समझता हूँ, कि आपको वहाँ कोई आश्चर्य की बात दिखाई दी है, तभी आपका हृदय स्थिरभाव से ध्यान में लगा रहा है।' तब अक्रूर ने श्रीकृष्ण से उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा- 'इस चराचर जगत में तुम्हारे सिवा दूसरा कौन-सा आश्चर्य का विषय होगा? श्रीकृष्ण! मैंने वहाँ वह आश्चर्य देखा है, जो भूतल पर दुर्लभ है। जैसा वहाँ देखा था, वैसा ही आश्चर्य यहाँ भी देखता हूँ और उसी में रम रहा हूँ। श्रीकृष्ण! यहाँ तीनों लोकों के मूर्तिमान आश्चर्य से मेरी भेंट हो गयी है। अब इससे बढ़कर कोई आश्चर्य मैं नही देख सकता। अत: प्रभो! अब आओ, कंसराज की मथुरा नगरी में चलें। ये सूर्यदेव दिन के अन्त में जब तक अस्त न हों, तभी तक हमें वहाँ पहुँच जाना चाहिये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णुपर्व में अक्रूर द्वारा नागलोक के वृन्तान्त का कथन विषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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